लखनऊ जनकल्याणकारी समिति के जनसेवक दिलीप श्रीवास्तव जी ने बताया कि अपमानजनक अत्याचारों व ध्वस्त मंदिरों के जीर्णोद्धार का काम नहीं हुआ। श्रीराम और श्रीकृष्ण काल्पनिक बताए जाते रहे। सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार राष्ट्रीय पौरुष पराक्रम का प्रतीक था। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर का निर्माण अंतिम चरण में है। यह प्रसन्नता की बात है। अब विदेशी हमलावरों और औरंगजेब जैसे शासकों ने जहां जहां मंदिर ध्वंस किए थे, वहां वहां सभी उपासना स्थलों के जीर्णोद्धार की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा हैं।
उपासना स्थल ध्वंस का कृत्य राष्ट्रीय अस्मिता का अपमान है। इसकी भरपाई उपासना स्थल अधिनियम से संभव नहीं है। आक्रांताओं व मुगल शासकों द्वारा तोड़े गए प्रत्येक हिन्दू उपासना स्थल की पहचान के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक आयोग बनाया जा सकता है। हिन्दू संविधान और विधि के प्रति आदरभाव से युक्त रहते हैं। वे देव मंदिरों की पूर्व स्थिति की बहाली के लिए कोर्ट कचहरी जाते हैं। आहत होते हैं।
हिन्दू मन मथुरा काशी सहित सभी उपासना स्थलों के ध्वंस की दुखद स्मृतियों से छुटकारा चाहता है। सुखद है कि अयोध्या से विदेशी आक्रांता बाबर का भूत भगा दिया गया है। काशी और मथुरा पर न्यायालय विचार कर रहा है। पहले से ही काफी देर हो गई है। राष्ट्रीय अस्मिता के अपमान की घटनाओं की उपेक्षा नहीं की जा सकती। राष्ट्रीय अपमान के तथ्य सुस्पष्ट हैं। प्रत्यक्ष हैं। आहतकारी हैं। ध्वंस मंदिर स्वयं में साक्ष्य हैं और प्रमाण हैं। सभी सामाजिक राजनैतिक और संवैधानिक संस्थाएं इस पर विचार करें और तद्नुसार निर्णय लें।